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भूल जाओ रोजगार, ज़ोर से बोलते रहो वैश्य, कुशवाहा, ब्राह्मण, निषाद और भूमिहार !

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  रोजगार का सवाल अगर जाति की दीवार तोड़कर एकजुट होकर युवाओं ने पूछना शुरु कर दिया तो राजनीतिक दुकानें बंद हो जाएगी। इसीलिए आप युवा नहीं, कुर्मी-कोईरी, राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण, निषाद, वैश्य में बंटे रहे और जयंती मनाते रहें। जातीय गोलबंदी के लिए अलग-अलग महापुरुषों के नाम पर जयंती  कभी सम्राट अशोक की जयंती के नाम पर कुर्मी-कोईरी वोट बैंक पर दावा, कभी भामाशाह की जयंती के नाम पर वैश्य समाज के वोट बैंक पर दावा, कभी परशुराम की जयंती के नाम पर भूमिहार ब्राह्मण के वोट बैंक पर दावा। कभी वीर कुंवर सिंह की जयंती के नाम पर राजपूतों को लामबंद करने की कोशिश। कभी बाबा साहेब अंबेडकर की जयंती के नाम पर दलितों को एकजुट करने की कोशिश, तो कभी किसी और महापुरुष की जयंती के नाम पर किसी और जाति वर्ग के लोगों को एकजुट करने की कोशिश। ज़रा इन तस्वीरों को गौर कीजिए।   ये बिहार है। बिहार जहां आपके नाम और काम में दिलचस्पी हो ना हो, लेकिन आपके सरनेम और जाति में लोगों की ज्यादा दिलचस्पी होती है और अगर आपने कुछ बेहतर काम कर लिया, तब तो पक्का आपकी जाति, उपजाति, गोत्र वगैरह सब खोज लिया जाता है और उस जाति ...

'पूरब का ऑक्सफोर्ड' अब रैकिंग की दौड़ में हिस्सा लेने के काबिल भी नहीं रहा, बाकी यूनिवर्सिटी की तो बात ही छोड़िए

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14 अक्टूबर 2017 की तारीख याद कीजिए। जब पटना यूनिवर्सिटी के शताब्दी वर्ष समारोह में सीएम नीतीश कुमार, पीएम नरेंद्र मोदी से हाथ जोड़कर पटना यूनिवर्सिटी को केंद्रीय यूनिवर्सिटी का दर्जा देने की मांग करते रहे। जवाब में पीएम मोदी ने 20 टॉप यूनिवर्सिटी को वर्ल्ड क्लास बनाने का सपना दिखाकर बहला दिया। समारोह खत्म, तामझाम खत्म और केंद्रीय यूनिवर्सिटी का दर्जा देने की बात भी खत्म।  लेकिन सोचिए जो नीतीश कुमार खुद पटना यूनिवर्सिटी के प्रोडक्ट हैं। जो नीतीश कुमार पटना यूनिवर्सिटी को केंद्रीय यूनिवर्सिटी का दर्जा देने की मांग करते रहे। आखिर वो यूनिवर्सिटी आज मरणासन्न क्यों है? कभी पूरब का ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाले पटना यूनिवर्सिटी आखिर क्यों देश के टॉप 100 यूनिवर्सिटी की रैकिंग में भी जगह लाने के काबिल नहीं है। जी हां, नेशनल इंस्टीट्यूशन रैंकिंग फ्रेमवर्क यानी NRIF की देश भर के यूनिवर्सिटीज को लेकर ओवरऑल रैकिंग 11 जून को जारी की गई। इसमें पटना यूनिवर्सिटी का कहीं नामोनिशान नहीं है। सबसे हैरानी की बात ये है कि पटना यूनिवर्सिटी इस दौड़ में शामिल ही नहीं हुआ और ये पहली बार नहीं है जब पीयू ने खुद को ...