शराबबंदी के लिए सीएम का ‘समाज सुधार’, शराबबंदी पर ‘सुप्रीम’ सवाल लगातार
शराबबंदी को लेकर सीएम नीतीश कुमार लगातार समाज सुधार अभियान पर है। बिहार के हर जिले में जाकर नीतीश शराबबंदी के फायदे गिना रहे हैं और शराबबंदी के विरोध करने वालों को कोसते हैं। वहीं शराबबंदी की सफलता के लिए मद्य निषेध विभाग को ड्रोन से लेकर हेलीकॉप्टर तक मुहैया कराए गए हैं। बिहार में शराब की एक बूंद भी कहीं ना मिले, शराब का कोई धंधा ना हो। इसके लिए सरकार ने पूरी मशीनरी झोंक दी है। स्वान दस्ता से लेकर आतंकवाद निरोधक दस्ता तक। ड्रोन से लेकर हेलीकॉप्टर तक। सबकुछ शराब के खिलाफ अभियान में लगाया गया है। लेकिन सीएम नीतीश के इस ड्रीम प्रोजेक्ट पर सुप्रीम कोर्ट लगातार सवाल उठा रहा है और बार-बार बिहार सरकार को फटकार लगा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने एकबार फिर बिहार में शराबबंदी पर सवाल उठाया है और नीतीश सरकार से कहा-पूछा किस आधार पर की थी शराबबंदी? शराबबंदी कानून के उल्लंघन के एक आरोपी की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजय किशन कौल और एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट के लगभग हर बेंच में बिहार में शराबबंदी कानून से जुड़ी याचिकाएं हैं. इसलिए हमें यह जानना जरुरी है कि क्या बिहार सरकार ने इन कानूनों को लागू करने से पहले कोई अध्ययन किया था और बुनियादी न्यायिक ढांचों को ध्यान में रखा था।
सुपीम कोर्ट ने बिहार सरकार से पूछा है--
क्या शराबबंदी कानून लागू करने से पहले
राज्य सरकार ने कोई अध्ययन किया?
कानून लागू करने से पहले यह देखा कि इसके
लिए न्यायिक ढांचा तैयार है या नहीं?
सरकार से यह उम्मीद की जाती है कि वह कानून
बनाते समय उसके सभी पहलुओं को देखें
अदालती ढांचे को विकसित करने के लिए बिहार
सरकार ने क्या कदम उठाए हैं?
क्या कोर्ट और जजों की संख्या बढ़ाने को
लेकर कोई कदम उठाए हैं?
इस कानून में बिहार
सरकार प्ली बारगेनिंग प्रावधान जोड़ेगी या नहीं?
कोर्ट में आरोप स्वीकार
करने पर सजा में नरमी को प्ली बारगेनिंग कहते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने
अदालतों में शराबबंदी कानून से जुड़े मामलों और जमानत याचिकाओं की बाढ़ को लेकर भी
बिहार सरकार से सवाल पूछे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटना हाईकोर्ट के 26 में से 16 जज शराबबंदी कानून से जुड़े मसले देखने में व्यस्त हैं। बिहार में निचली अदालतों
में भी जमानत याचिकाओं की बाढ़ आ गई है। जमानत याचिकाओं को खारिज करने पर जेलों मे
कैदियों की संख्या तेजी से बढ़ेगी। बिहार
सरकार को सभी बिंदुओं पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। अब इस मामले की
सुनवाई 8 मार्च को होगी
इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने
शराबबंदी के आरोपियों की जमानत के खिलाफ बिहार सरकार की याचिका पर 11 जनवरी को
फटकार लगा चुका है। दरअसल बिहार सरकार शराबबंदी के आरोपियों की जमानत के खिलाफ
सुप्रीम कोर्ट गई थी। जमानत के खिलाफ 40 अपील लेकर बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट गई
थी। बिहार सरकार की सभी 40 अपीलों को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। सुनवाई के दौरान बिहार सरकार की ओर से पेश
अधिवक्ता मनीष कुमार ने दलीलें दीं, जिस पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश ने खूब फटकार
लगाई।
बिहार सरकार की ओर से दलील दी गई थी- आरोपी से जब्त की गई शराब की मात्रा को
ध्यान में रखते हुए तर्कसंगत जमानत आदेश पारित करने के लिए दिशानिर्देश तैयार किए
जाएं। जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश एनवी रमना ने
कहा कि - आप जानते हैं कि इस कानून
ने पटना हाईकोर्ट के कामकाज में कितना प्रभाव डाला है और वहां एक मामले को
सूचीबद्ध करने में एक साल लग रहा है और सभी अदालतें शराब की जमानत याचिकों से भरी
हुई हैं।' इस दौरान उन्होंने कहा कि 'मुझे बताया गया है कि
पटना हाईकोर्ट के 14-15 न्यायाधीश हर दिन इन जमानत मामलों की
सुनवाई कर रहे हैं और कोई अन्य मामला नहीं उठाया जा पा रहा है।'
पहले भी CJI ने शराबबंदी कानून पर तल्ख टिप्पणी की थी
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य
न्यायधीश एनवी रमना ने शराबबंदी कानून को अदूरदर्शिता का उदाहरण बताया था। जिसके
कारण अदालतों में एक साधारण जमानत के मामले की सुनवाई में एक साल लग जाते हैं। पहले
CJI ने शराबबंदी कानून को अदूरदर्शिता का उदाहरण बताया
और अब तल्ख टिप्पणी की। ऐसे में सवाल है कि बिहार जहां पहले से ही कई मामलों में
सुनवाई में दशकों लग जाते हैं, और इंसाफ मिलने में देरी होती है। वहां क्या
शराबबंदी कानून अदालतों का बोझ बढ़ाकर आम आदमी को इंसाफ मिलने की राह में रोड़ा बन
रहा है। सवाल का जवाब समझने के लिए आंकड़ों पर गौर कीजिए।
बढ़ते जा रहे हैं शराबबंदी कानून के लंबित मामले
बिहार में शराबबंदी अप्रैल, 2016 में लागू
हुई। बिहार पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, पिछले साल
अक्टूबर तक बिहार मद्य निषेध और उत्पाद शुल्क कानून के तहत 3,48,170 मामले दर्ज किए गए और 4,01,855 गिरफ्तारियां की गईं और ऐसे मामलों में लगभग
20,000 जमानत याचिकाएं उच्च न्यायालय या जिला अदालतों में लंबित हैं। अब
तक मद्य निषेध कानून उल्लंघन से जुड़े दो लाख से भी अधिक मामले संज्ञान में आए हैं, मगर 65 फीसद मामलों का ही ट्रायल शुरू हो पाया है। मद्य निषेध एवं
उत्पाद विभाग के अनुसार, दिसंबर तक करीब
एक लाख आठ हजार मामलों का ट्रायल शुरू हुआ है, जबकि 94 हजार
से अधिक मामले ऐसे हैं, जिनका ट्रायल
लंबित है। पिछले पांच सालों में महज 1636 कांडों का ही ट्रायल पूरा हो पाया है।
इसमें 1019 मामलों में सजा सुनाई गई है, जबकि 610
मामलों में आरोपित दोषमुक्त सिद्ध हुए हैं। पूरे राज्य में एक लाख 37 हजार 643 केस
ऐसे हैं, जो संज्ञान के स्तर पर लंबित हैं। इसमें सर्वाधिक मामले पटना के हैं।
पटना में पुलिस के 33,268 जबकि
उत्पाद टीम के 5,240 केसों में
संज्ञान नहीं लिया गया। मुजफ्फरपुर में भी 10 हजार से अधिक, सारण में आठ हजार से अधिक जबकि गया में 6800 से अधिक मामले संज्ञान की
प्रतीक्षा में हैं।
पहले ही 34 लाख मामले बिहार की अदालतों में लंबित हैं
शराबबंदी कानून के लंबित मामलों का बोझ तब बढ़ रहा है, जब पहले से ही
न्यायलयों में 10 सालों से लाखों मामले लंबित पड़े हैं। बिहार में 34 लाख मामले
न्यायालय में लंबित हैं। हाल ही में राज्य सभा सांसद एवं राज्य के पूर्व
उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के एक प्रश्न के उत्तर में कानून मंत्री किरेन
रिजीजू ने राज्यसभा में बताया कि बिहार के अधीनस्थ न्यायालयों में 5 लाख से ज्यादा
मामले 10 वर्षों से ज्यादा समय से लंबित हैं। जिसमें 4 लाख 38 हजार क्रिमिनल तथा
63,241 सिविल मामले हैं। हाई कोर्ट में 10 वर्ष से पुराने मामले 26,274 लंबित हैं।इसी प्रकार अधीनस्थ न्यायालयों में 7 लाख 25 हजार तथा
उच्च न्यायालयों में 27 हजार 228 मामले 5 से 10 वर्ष से लंबित हैं। 5 वर्ष से कम
के लंबित मामलों की संख्या अधीनस्थ न्यायालय में 21 लाख 46 हजार तथा हाईकोर्ट में
1 लाख 73 हजार है। 10 दिसंबर, 2021 तक कुल
लंबित मामलों की संख्या हाईकोर्ट में 2 लाख 27 हजार है तथा अधीनस्थ न्यायालयों में
33 लाख 73 हजार है। मंत्री ने यह भी बताया कि बिहार के जिला और अधीनस्थ न्यायालयों
में न्यायिक अधिकारियों के 554 पद रिक्त हैं।
साफ है सिर्फ कानून बनाने और लागू कर
देने भर से शराबबंदी खत्म नहीं होगी, जब तक कानून लागू करने से लेकर दोषियों को
सजा दिलाने तक की पूरी व्यवस्था मुकम्मल नहीं की जाएगी।
बिहार में शराबबंदी बिहार की शक्ति उद्देश्य,समय सब की बर्बादी मात्र है,
जवाब देंहटाएंसरकार इतनी अंधी हो चुकी है कि
आए दिन इस दलदल में धंसती जा रही है।
समस्याओं के निपटान से ज्यादा समस्या बनाने के पीछे सरकार कार्यरत है।
अगर ऐसे क्षेत्रों में रोजगार अथवा उधोगो को बढ़ावा दिया जाए तो बिना शराबबंदी किए ही एक सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे।