बब्बनराव कदम बार-बार एक रघु पैदा करेगा, आप पर जुल्म करेगा , फिर एनकाउंटर में रघु मरेगा और आप बब्बनराव के लिए ताली बजाते रहेंगे
फिल्म
वास्तव आपमें से बहुत ने देखी होगी। फिल्म के एक सीन के ये दो छोटे हिस्से
देखिए। विकास दुबे में आपको वास्तव का रघु नज़र आएगा, जिसे 20 सालों तक
किसी बब्बनराव कदम ने पाला-पोसा, उसके आतंक को शह दिया और कुर्सी बचाता रहा। लेकिन जब रघु का काम खत्म तो उसे मार दिया फिर कोई और रघु आ गया। रील लाइक का ये सीन रियल लाइफ से ही प्रभावित है। लेकिन ना रील लाइफ में और ना रियल लाइफ में बब्बनराव कदम बेनकाब हो पाता है।
सोचिए जिस विकास दुबे का दबदबा पिछले 25 सालों में यूपी में हमेशा बना रहा, चाहे सरकार बसपा की हो, सपा की हो या भाजपा की। विकास का रसूख और दबदबा हमेशा कायम रहा। उसके दबदबे का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि साल 2001 में बीजेपी नेता और तत्कालीन राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त संतोष शुक्ला को दौड़ाकर शिवली पुलिस थाने ले गया और थाने के अंदर पुलिसवालों के सामने बेरहमी से मार डाला।
लेकिन फिर भी सबूतों और गवाहों की कमी के कारण वो बरी हो गया और उसका बाल भी बांका नहीं हुआ। बाकी उसके आतंक की फेहरिस्त में हत्या, अपहरण जैसे 65 से ज्यादा मामले दर्ज हैं, लेकिन अब तक उस पर कोई हाथ नहीं डाल पाया। लेकिन शायद अब वास्तव फिल्म के रघु की तरह विकास दुबे किसी बब्बन राव के लिए बोझ बनने लगा होगा खास तौर पर 8 पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद। सो उसका काम तमाम कर दिया। शायद अब कोई और विकास दुबे कुछ सालों बाद पनपे, पाले पोसे जाए। लेकिन कभी आपने बब्बनराव कदम को
बेनकाब होते देखा है, जो गुंडे पालता है, उसके आतंक को शह देता है और फिर
फायदा निकलने पर खत्म कर देता है। यही सिलसिला चलता रहता है। इसीलिए समस्या का जड़ रघु से ज्यादा
बब्बनराव कदम जैसे सफेदपोश हैं। साथ ही
समस्या विकास दुबे जैसे आतंक को पनपने देने वाला डरपोक
समाज भी है। गौर से देखिएगा तो आपके गांव-कस्बे, गली
मोहल्ले औऱ शहर में भी आस-पास विकास दुबे दिख जाएंगे जिनके आतंक को शह
मिलती है खाकी औऱ खादी से और जिन्हें पनपता और सहता देखता रह जाता है समाज।
इसिलिए विकास दुबे जैसों को पनपने से पहले ही कुचलना होगा। वैसे बिहार में भी बब्बनराव जैसे हैं, जो
रघु जैसे गुंडों के दम पर कुर्सी बचाते रहे और बचा रहे। ये अलग बात है कि उनमें से कई गुंडों को खादी पहनाकर सफेदपोश की शक्ल दे दी गई। लेकिन उस खादी के अंदर गुंडे आज भी छिपे हैं।
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